शनिवार, 21 अप्रैल 2007

आत्‍महत्‍या का एक्‍सक्‍लूसिव आइडिया

फालतू बैठे-बैठे मगज में आत्‍महत्‍या का खयाल आया. यह एक्‍सक्‍लूसिव विचार आते ही मन उत्‍श्रृंखल हो गया. कौतुहल कल्‍पना में ही आनंद देने लगा.
आत्‍महत्‍या शार्टकट है. मोक्ष पाने का रिमोट. जब जी चाहा जिंदगी का चैनल म्‍यूट कर लिया. आत्‍महंता हीरो बन जाता है. हर तरफ चर्चाएं होती हैं. हालांकि उसकी गिनती शहीदों में नहीं होती, मगर शहीद से कमतर भी नहीं होती. पता नहीं समाज इसे क्‍यों स्‍वीकार नहीं करता है. वैसे ही समाज हमेशा ही प्रगतिशील इवेट्स का विरोध ही करता है. ठीक उसी तरह ज्‍यों अब तक प्रेम को सामाजिक स्‍वीकारोक्ति नहीं मिल पाई है. प्रेमियों का मिलन देखकर लोगों की आंतें खुजलाने लगती हैं. जब कोई मौत को चूमता या गले लगाता है, तो भी लोग सहन नहीं कर पाते.
खैर, मैं झटपट कागज कलम लेकर सुसाइड नोट लिखने बैठ गया. आतमहत्‍या का कारण लिखने की बारी आई तो मुश्‍ि‍कल खड़ी हो गई. अकारण कोई नहीं मरता और कारण घोषित किए बगैर मरने वालों के विषय में उलजलूल कयास लगाए जाते हैं. मरने का एक्‍सपीरिएंस तो लेना ही था, लेकिन जल्‍दी का काम शैतान का. अपने पीछे कारण छोड़ना बेहद जरूरी है. खुद को मोहलत देते हुए प्रोग्राम पोस्‍अपांड करना पड़ा. घरेलू कलह, कार्यक्षेत्र का तनाव, कर्ज का बोझ, भारी भरकम और नितांत अव्‍यवहारिक सी वजहें मालूम हुईं. दहेज प्रताड़ना की कहानी अविवाहित होने के चलते पिफट नहीं बैठती. दुर्योग से कोई बहुत बुरा काम भी नहीं किया था, सो अपनी ही नजरों में गिर गया हूं टाइप फार्मूला भी काम न आया. तभी वो सांवली सी सूरत याद हो आई, जो आफिस में अक्‍सर दिखाई देती है. प्रेम में असफलता की कहानी का विश्‍वास नहीं दिलाना पड़ता. सुनने वाले आथेंटिक मानकर खुद बखुद चटखारे लेने लगते हैं. एकदम खालिस मुद़दा, टनाटन बहाना.
साहित्‍य का दुर्भाग्‍य है कि आतमहत्‍या पर कुछ खास नहीं लिखा गया. आतमहत्‍या कैसे करें या आत्‍महत्‍या के घरेलू नुस्‍खे जैसी कोई रोचक किताब होती, तो दिक्‍कतें न पेश आतीं. किताब से जो आइडिया जंच गया, इस्‍तेमाल कर लिया. सुसाइड नोट का प्रारूप भी किताब में होना चाहिए.
अब सही तरीका तय करने की जरूरत थी. चार फुटा रस्‍सी लेकर पंखे से लटक जाना, फिर बेंच को लात मारकर खिसकाना बचकानी हरकत है. नुवान या सल्‍फास पर पैंसा खर्च करना भी बेवकूफी है. छत से कुद जाना या नदी में छलांग लगाना हिम्‍मत का काम है और साहसी आत्‍महत्‍या नहीं करते. रेल या गाड़ी के नीचे आ जाना मूर्खता है. पसलियों का ढंग से क्रियाकर्म भी न हो सकेगा. कुल 108 तरीकों पर विचार किया, लेकिन मामला जंचा नहीं. किसी से मशविरा करने का रिस्‍क नहीं लिया जा सकता. आईपीसी की धारा 309 माथे चढ़ सकती है. सोचते रहने से घबराहट भी होने लगी, क्‍योंकि सुसाइड करने वाले के शरीर की चीर फाड़ होती है. सुनकर ही डर लगता है. ताउम्र कभी इंजेक्‍शन नहीं लगवाया, मरने के बाद ऐसी दुर्गति होगी. तब प्रतिवाद भी न हो सकेगा.
एक और महत्‍वपूर्ण सवाल है. कोई आंसू बहाने वाला तो होना चाहिए. आखिर किसी को तो कमी महसूस होनी चाहिए, वरना मरने का क्‍या औचित्‍य. सोच रहा हूं, पहले मरने वाला या वाली ढूंढ लूं, फिर सुसाइड करूंगा. कोई भी, जो फर्जी ही सही दो आंसू ढुलका दे. या पहले रो लूं अपनी भावी मौत पर, तब करूंगा आत्‍महत्‍या.

7 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

क्या आत्महत्या के 108 आइडिए? व्यंग्य ही सही पर इतना तो न फेंकिए जनाब। 25 भी गिना दें, तो आपको जाने।

रवि रतलामी ने कहा…

"...25 भी गिना दें, तो आपको जाने।..."

और वे सभी श्योर शॉट, अनुभूत प्रयोग होने चाहिएँ :)

ePandit ने कहा…

हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है विशेष जी। नए चिट्ठाकारों के स्वागत पृ्ष्ठ पर भी जाएं।

हमारी शुभकामनाएं कि आपकी सब इच्छाएं पूरी हों। :)

36solutions ने कहा…

स्‍वागत है व्‍यंगकार का चिट्ठाजगत में
अब आप आ गये हैं तो आगे और भी पढने को मिलेगा

Divine India ने कहा…

जैसा आपके ब्लाग का उद्देश्य है बस बैसा ही लिखा है…एकदम नवीन है नया कहा है और विचार भी उत्तम है…।बधाई।

नीरज दीवान ने कहा…

एक आइडिया तो बता ही दिया. आपका लेख पढ़कर भी आत्महत्या का पवित्र विचार आया है.
चलो अब दूसरे लेख की तैयारी करो दादा. इस बार प्रयोगशाला मे बेहतर व्यंग्य होना चाहिए.

नीरज दीवान
http://neerajdiwan.wordpress.com

ghughutibasuti ने कहा…

बहुत अच्छा लिखा है आपने ! पर भाई कोई आजमाया हुआ नुस्खा लिखा होता तो बात थी !
घुघूती बासूती :D