शनिवार, 26 मई 2007

मेरा दिल ग्‍लेशियर, यहां फकत पानी



कल रात छत पर पिघलता रहा पानी।
टंकी में जो दिनभर उबलता रहा पानी।


तेरे बाद मैं बेरौनक हूं कुछ इस कदर
धूप के बाद ज्‍यों ओस बन जाए पानी।


जवां रहें तेरी कामयाबियां, तिरा नसीब
तेरी चाहतें मुश्‍क, मेरी बरबादियां पानी।


कभी लहू, कभी पसीना, कभी आंसू बने
हर शहर, हर डगर पर बहता जाए पानी।


सुना, शाहेजहां का इश्‍क है संगमरमरी
मेरा दिल ग्‍लेशियर, यहां फकत पानी।


कोई उन्‍हें इतनी इत्ति‍ला कर दे 'विशेष'
जुस्‍तजू-ए-यार में हर नजर पानी-पानी।

4 टिप्‍पणियां:

Mohinder56 ने कहा…

जवां रहें तेरी कामयाबियां, तिरा नसीब
तेरी चाहतें मुश्‍क, मेरी बरबादियां पानी।

सुन्दर अभिव्यक्ति है विचारोँ की,
लिखत रहिये

the theif ने कहा…

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sanjay patel ने कहा…

सुना, शाहेजहां का इश्‍क है संगमरमरी
मेरा दिल ग्‍लेशियर, यहां फकत पानी।

पानी उन्वान की आपका ग़ज़ल छूती है मन को.नये लिख्नने वालों में शब्द-शिल्प तो उम्दा होता है लेकिन ख़याल क़मज़ोर.आप दोनो मेयार पर क़ामयाब हैं आपकी ग़ज़ल का ऊपर उल्लखित मतला बड़ा खूबसूरत बन पड़ा है.ग़ज़ल को अब ऐसे ही नये तेवरों की ज़रूरत है.
दुआओं के साथ.

अभिनव ने कहा…

वाह वाह,
आपकी ग़ज़ल बढ़िया लगी।